Tuesday, August 17, 2010

विघटित प्राज्ञिक मूल्यकाबीच

विघटित प्राज्ञिक मूल्यकाबीच
–विजय चालिसे
वीपी कोइराला नेपाल–भारत प्रतिष्ठानको अयोजनामा आयोजित भनिएको चौथो नेपाल–भारत लेखक सम्मेलन १३ बुँदे काठमाणौं घोषणापत्र जारी गर्दै औपचारिकता पूरागरेर सकिएको छ । विपी कोइराला नेपाल–भारत प्रतिष्ठानका गतिविधि र यसका नियमित सम्मेलनहरू सर्धै विवादमा पर्दै आएका छन् । तिनमा वास्तविक प्राज्ञ–साहित्यकारभन्दा विशेष आस्थागत समूह र गूटका निकटतम व्यक्तिहरूमात्र सहभागी बनाइने गरेको चर्चा यसका हरेक गतिविधि र सम्मेनका अवसरमा सुनिने गरिएको हो । अहिले पनि पूर्व रूप र प्रवृत्ति नै दोहोरिनुलाई त्यति अनौठो मानन नपर्ला, तर राज्यले सामग्र लेखक–साहित्यकारको साझा थलो बनोस् भनेर दुई देशबीचको सहभागितामा स्थापना गरिएको संस्थालाई त्यो लक्ष्य र उद्देश्यबाट अलग हुनुदेखि जोगाउन आवश्यक खबरदारी गर्नु दायित्वभित्रैको कुरा मानिनु पर्छ । सायद यिनै पूर्वप्रवृत्तिको पुनावृत्तिका कारण यति महत्वपूर्ण सममेलनलाई नेपाली सञ्चार माध्यमले खासै महत्व दिएको देखिएन । भर्खरै सकिएको चौथो नेपाल–भारत सुाहित्य सम्मेलन पनि प्रतिष्ठित भारतीय नेपाली साहित्यकारलाई काठमाडौं बोलाएर सामन्य भेटघाटको अवसर दिने–दिलाउने भन्दा बढी लाभदायी बनेको अनुभव गर्न पाइएन । नेपाली सञ्चार माध्यमहरूमा बढी चर्चा र स्थान सम्मेलन गतिविधिहरूले भन्दा भारतीय नेपाली साहित्यकारहरूलाई लिएर अन्य संस्थाले गरेका स्वागत तथा विचारआदानप्रदानका समाचारलाई दिइनुले पनि यसको पुष्टी गरेको छ । उता भारतीय सहभागी प्रतिनिधिहरूका नाम सञ्चार माध्यममा आएता पनि नेपाली सहभागी को को थिए भन्ने यथार्थ जानकारी समेत बाहिर ल्याउन समेत आयोजकहरू हच्किएको देखिनुले स्वयम नै सहभागिताको शहहुन अवश्य पनि यसबाट सम्मेलनको प्रभावकारिता र संयोजनमाथि ठूलै प्रश्न उठेको मान्नु पर्छ । यस्तो किन भयो, चर्चामा आएका केही तथ्य र जानकारीका आधारमा सहजै अनुमान गर्न सकिन्छ । भारतीय सभागीहरूको नाम सञ्चार माध्यमद्वारा प्रकाशमा ल्याइनु तर नपाली प्रतिनिधिका नाम प्रकाशमा नआउनुले मा लाई नेपाली
त्जभ अयलाभचभलअभ मभअष्मभम ष्mउझिभलतष्लन mयचभ उचयनचबmmभक तय भलजबलअभ ष्लतचब अगतिगचब िबलम ष्तिभचबचथ चभबितष्यलक दभतधभभल तजभ तधय अयगलतचष्भक। त्जभ अयलाभचभलअभ धबक उबचतष्अष्उबतभम दथ तभल धभिि(पलयधल ल्भउबभिकभ ष्तिभचबचथ ाष्नगचभक ाचयm ब्ककबm, म्भजबचबमगल, ःभनजबबिथब, म्बचवभभष्लिन बलम क्ष्पपष्m। ल्भधक चभउयचतक कबथ तजभचभ धभचभ छण् उबचतष्अष्उबलतक ाचयm ल्भउबसि जयधभखभच, तजभ यचनबलष्शभचक धभचभ दष्बक तय उष्अप गउ mयकत या तजभ उबचतष्अष्उबलतक लयत खष्भधष्लन तजभष्च अबउबअष्तथ बलम मभनचभभ या अयलतचष्दगतष्यलक, दगत mबष्लथि ाचयm तजभ कभअतष्यल या लयल(अचभबतष्खभ भ्लनष्किज mभमष्गm अयmउष्भिचक बलम तचबलकबितयचक बयिलन धष्तज तजभ लयmष्लभभ ाचयm क्ष्तब िल्ष्धबक बलम ीबष्लअजबगच। त्जभ ँयगलमबतष्यल ाचयm तजभ खभचथ दभनष्ललष्लन कभझक यउभलथि तष्तिभम तयधबचमक ब कउभअषष्अ ष्मभययिनथ बलम नचयगउक या धचष्तभचक धजय अयmउचष्कभक mयकतथि लयत ाचयm तजभ अचभबतष्खभ धचष्तष्लन दगत ाचयm अयतभचष्भ या भ्लनष्किज धचष्तभचक। ःबलथ या तजभ नचभबत mबभकतचय या तजभ उचभकभलत मबथ ल्भउबष् िष्तिभचबचथ धयचमि बलम तजभ धचष्तभचक ाचयm उचयनचभककष्खभ ाचयलतक बचभ भहअगिमभम ष्ल भखभचथ अयलाभचभलअभक। त्गकिष् म्ष्धबक, ष्ल जष्क बममचभकक ष्ल तजभ अयलअगिमष्लन कभककष्यल, चष्नजतथि यदकभचखभम तजबत तजभ मभष्दिभचबतष्यलक धभचभ खभचथ कगउभचाष्अष्ब िबक खभचथ ाभध नभलगष्लभ धचष्तभचक बलम ष्तितéचबतभगच धभचभ उबचतष्अष्उबतष्लन ष्ल तजभ अयलाभचभलअभ। त्जभ अयलाभचभलअभ ष्त कभाि धबक उचयखभम लयत mयचभ तजबल ब गलउबिललभम वबmदयचभभ, बक लभष्तजभच धबक कगदकतबलतष्ब िमभष्दिभचबतष्यलक यल तजभ उचयदझिक तजबत धचष्तभचक या दयतज अयगलतचष्भक बचभ ाबअष्लन लयच तजभथ तचष्भम तय भहउयिचबतष्यल तजभ mभअजबलष्कm या ाचभभ ायिध या उगदष्अिबतष्यलक धष्तजष्ल तजभ तधय अयगलतचष्भक। द्य।ए।यष्चबबि ल्भउब(िक्ष्लमष्ब ायगलमबतष्यल, भिबम बधिबथक दथ लयल ष्तिभचबचथ ाष्नगचभक
ऋयलतचष्दगतयचक, धजय बचभ मभमष्अबतभम धष्तज तजभष्च ागिि नभलष्गक दगत जबखष्लन लय उयधभच अभलतभचक, नचयगउक, बलम बउउचयबअजभक भहअभउत नभलभचब िचभबमभचक बलम तजभष्च धयचपक, बचभ बधिबथक यखभचकजबमयधभम दथ कगअज नचयगउक बलम तजभष्च बअतष्खष्तष्भक। त्जभ त्रगभकतष्यल ष्क, धजबत धष्िि जबउउभल धजभल mबष्ल कतचभबm ष्तिभचबतगचभ, तजबत ष्क कगउउयकभम तय दभ तजभ mयकत खबगिभम चभउचभकभलतबतष्खभ या उभयउभिुक कभलतष्mभलतक, भहउभचष्भलअभक बलम अगतिगचब िझष्ककबचथ, mभचनभ धष्तज कगअज ब उयउगबिच तथउभ या ष्तिभचबतगचभरु ग्ललभअभककबचथ कभहगब िअयलतभलत, mभबलत भहअगिकष्खभथि तय मभष्खिभच भचयतष्अ तजचष्ििक, जबक तबपभल चययतक ष्ल ल्भउबष् िष्तिभचबतगचभक धभिि बक कयmभ भ्लनष्किज ष्तिभचबतगचभ धचष्ततभल दथ ल्भउबष् िधचष्तभचक। त्जभ यतजभच त्रगभकतष्यल ष्क, तजभ अयााभभ(तबदभि नयककष्उक ष्लागिभलअभम दथ बष्भिल अयलकगmभच अगतिगचभ ष्ल तजभ लबmभ या ल्भउबष् िधचष्तष्लन, अयगमि तचगथि चभउचभकभलत तजभ कउष्चष्त बलम नभलष्गक या mबष्लकतचभबm ल्भउबष् िष्तिभचबतगचभरु
क्ष्ल कगअज बल भलखष्चयलmभलत अबउबदभि बलम लयतबदभि धचष्तभचक बचभ नभततष्लन यिकत ाचयm तजभ अचयधमक या लयलअयmउभतष्तष्खभ दगत बउउचयबअज ागिि धचष्तभचक या तजभ मबथ। ीष्पभधष्कभ, चभअभलतथि कयmभ ल्भउबष् िधचष्तभचक बचभ mबपष्लन ाबmभ बलम ायचतगलभ धचष्तष्लन ष्तिभचबतगचभ ष्ल भ्लनष्किज तजबत ष्क अयmmभलमबदभि। त्जभ धयचपक दथ कगअज धचष्तभचक, धजय जबखभ बउउचयबअज तय तजभ mगतिष्लबतष्यलब िउगदष्किजष्लन जयगकभक, जबखभ mबमभ धयचमिधष्मभ बअअभकक बलम बचभ दभष्लन अयलकष्मभचभम बक तजभ चभउचभकभलतबतष्खभ नभलष्गक या अयलतझउयचबचथ ल्भउबभिकभ ष्तिभचबतगचभ। ऋयलतभलत जबक लय mभबलष्लन ष्ल तजभ अयलतझउयचबचथ धयचमि, यलथि तजभ बिलनगबनभ गकभम बक mभमष्गm अयगलतक mगअज। त्जष्क ष्लमष्अबतभक, ःबचकजबिि ःअीगजबलुक बउजयचष्कm तजबत mभमष्ब ष्क तजभ mबककबनभ, ष्क दभष्लन ब चभबष्तिथ ष्ल यगच अयलतभहत। द्यगत, ष्त ष्क कष्mउथि भहबननभचबतष्यल, बलम अबल उचभकभलत धचयलन उष्अतगचभ या ल्भउबभिकभ ष्तिभचबचथ धयचमि। त्जभचभ बचभ कयmभ उभयउभि, नचयगउक बलम यचनबलष्शबतष्यलक तजबत अबिष्mक तजभथ बचभ अयmmष्ततभम तय उचयmयतभ ल्भउबभिकभ ष्तिभचबतगचभ, दगत तजभ बअतष्खष्तथ या तजभष्चक कभझ तय दभ अयलअभलतचबतभम तय उचयmयतभ ब उभततथ नचयगउ या उभयउभि या तजभष्च ष्लतभचभकत तजचयगनज बष्भिल mभमष्गm।
त्जभ ष्तिभचबतभथि धयचप जयध mगअज तजभथ mबथ दभ उयउगबिच ष्ल तजभ तबकतभ या भ्गचयउभबल बलम ब्mभचष्अबल अगतिगचभ बलम मष्कअयगचकभ यल कभह, वभबयिगकथ, ाझष्लष्कm, ाष्मभष्तिथ, बलम mबचचष्बनभ उजभलयmभलब, जयधभखभच अयगमि लयत चभउचभकभलत तजभ ाबिखयचक या ल्भउबभिकभ कयष् िबलम कउष्चष्त। त्जभचभ ष्क ब मबलनभच, जयधभखभच, या तबपष्लन तजभ ष्तिभचबचथ धयचपक कभचष्यगकथि ष्ल तजभ धचयलन धबथ। क्य ष्तिभचबतगचभ mगकत, या अयगचकभ, कतबलम ष्ल चभअयनलष्शबदभि चभबितष्यल तय षिभ। त्जगक तजभ कगउभचाष्अष्ब िबअअयगलत बलम पलयधभिमनभ मभउष्अतभम ष्ल बलथ ष्तिभचबचथ धयचप mबथ मबmबनभ तजभ तचगभ चभउचभकभलतबतष्यल या ष्लमष्नभलयगक ाबिखयच( लबतष्यलब िअगतिगचभ, खबगिभ बलम mभबलष्लन या षिभ।

ऋगतिगचब िनयिदबष्शिबतष्यल बक कबष्म ष्ल ऋगतिगचब िनयिदबष्शिबतष्यलस् ष्खिष्लन यल ब ाचयलतष्भच भिकक ीबलम दथ ल्बमष्लभ न्यचमष्mभच, त्जभ त्ष्mभक इा क्ष्लमष्ब, ब्उचष् िद्दट, ज्ञढढढ।
त्जभ तभचm नयिदबष्शिबतष्यल जबक झभचनभम यगत या लभभम ायच तजभ भहउचभककष्यल या उयष्तिष्अब,ि भअयलयmष्अ, कयअष्ब िबलम अगतिगचब िअजबलनभक।
न्यिदबष्शिबतष्यल mबथ उचभकभलत mबलथ त्रगभकतष्यलक बकस् ाष्चकत, यलभ mगकत भहबmष्लभ धजबत तजभ बष्m या नयिदबष्शिबतष्यल या अगतिगचभ ष्क, यच तय दभ mयचभ मष्मबअतष्अ, कजयगमि दभ, ष्क ष्त, ष्ल तजभ बततझउत तय जभब ितजभ उभयउभिक या तजभ धयचमि ष्ल तजभष्च धयगलमष्लन मष्खष्कष्यल बलम तजभ mबलषभकतबतष्यलक या हभलयउजयदष्ब तजबत गलमभचष्लिभ अयलाष्अित, बल बष्m या झउजबकष्शष्लन तजभ गलष्तथ, तजभ यधल लभकक या अगतिगचब िभहउचभककष्यलरु ब् तबअतष्अ तय बखयष्म खबगिभ वगमनmभलतक या धजष्अज बचभ तजभ जष्नजभकत बचत ाचयm बmयलन तजयकभ बअजष्भखभम लबतष्यलबष्तिथ, वगमनmभलत ष्लागिभलअभम दथ तजभ लबतगचभ या धजबत ष्क चभनबचमभम बक अगतिगचभ ष्ल तजभ अयगलतचष्भक mबपष्लन कगअज वगमनmभलतक। इच ष्क तजभ बष्m तय खबगिभ तजभ मषाभचभलअभक, दचष्लन तजझ ष्लतय उबिथ बअचयकक बभकतजभतष्अ ाचयलतष्भचक बलम तजगक मष्कउचयखभ तजभ यिलन(जभमि कयखभचभष्नलतथ या लबतष्यलब िबलम उयष्तिष्अब िमष्खष्कष्यलक यखभच तजभ मभखभयिऊभलत या जगmबल उयतभलतष्बरिु
ःयकत उभयउभि बनचभभ, तजभ बष्m ष्क तजभ बितभच। थ्भत भबअज बलकधभच दचष्लनक बलयतजभच त्रगभकतष्यलस ष्mmभमष्बतभथि, तजष्क ष्क तजभ त्रगभकतष्यल या बिलनगबनभ, कष्लअभ बिलनगबनभ ष्क तजभ mभबलक या mबलथ अगतिगचब िबअतष्खष्तष्भक, अयचयििबचथ तय तजभ नचभबत यलभ या ष्तिभचबतगचभ ष्तकभाि।
। द्यगत, नयिदबष्शिबतष्यल अबल तजचभबतभल तचबमष्तष्यलक बलम अगतिगचभक बलम अचभबतभ अयलकगmभचक चबतजभच तजबल अष्तष्शभलक। क्जभ चभाभचचभम नयिदबष्शिबतष्यल बक तजष्ल अयबत या उबष्लत यल जगmबल ष्मभलतष्तथ, धजष्अज अबल अचभबतभ उचयदझिक बक यगच थयगलन उभयउभि बचभ कय(बष्पिभ, भबतष्लन तजभ कबmभ, धभबचष्लन तजभ कबmभ बलम तजभष्च ाबलतबकष्भक बचभ ष्लकउष्चभम दथ तजभ कबmभ तभभिखष्कष्यल अजबचबअतभचक।
ःयचभ तजबल घण्ण् बिलनगबनभक जबखभ बचिभबमथ दभअयmभ भहतष्लअत, बलम ूतजयगकबलमकू mयचभ जगचतष्लिन मयधल तजभ कबmभ चयबम, कबथ म्बलष्भ िब्दचबmक बलम क्तभखभल क्तचयनबतश या ल्भध थ्यचपुक ऋयचलभिि ग्लष्खभचकष्तथ। ूल्ष्लभतथ उभच अभलत या तजभ बिलनगबनभक बचभ भहउभअतभम तय मष्कबउउभबच धष्तज तजभ अगचचभलत नभलभचबतष्यल।ू
क्ष्त ष्क ब ष्लिनगष्कत यिकक धजयकभ भत्रगष्खबभिलत ष्ल दष्य(मष्खभचकष्तथ ष्क तजभ mबकक भहतष्लअतष्यल टछ mष्ििष्यल थभबचक बनय। त्जभ mयकत बगतजयचष्तबतष्खभ मबतबदबकभ यल ीबलनगबनभ ष्कितक ट,डण्ढ बिलनगबनभक तजबत बचभ कउयपभल ष्ल तजभ धयचमि तयमबथ, या धजष्अज घछठ जबखभ ाभधभच तजबल छण् कउभबपभचक।
ब् बिलनगबनभ, ष्पिभ कउभअष्भक, अबल जभभम ायच यदष्खिष्यल ष ष्त ष्क तजचभबतभलभम दथ ब उयधभचाग िष्लखबमभचस ष ष्त लय यिलनभच जबक ब बिचनभ भलयगनज, यच थयगलन भलयगनज, यच भअयलयmष्अबििथ खष्बदभि उयउगबितष्यल तय कउभबप ष्तस बलम ष्तक जबदष्तबत ष्क मभकतचयथभम यच मष्कउबिअभम दथ धबच। क्ष्लखबकष्खभ बिलनगबनभक बचभ उचयmयतभम दथ लबतष्यलब िनयखभचलmभलत यच दथ नचभबतभच लबतष्यलक बक ब गलषथष्लन उयष्तिष्अब िायचअभक यच तजभथ बचभ भककभलतष्ब िायच धयचप यच भअयलयmष्अ बअतष्खष्तथ, गकभम ष्ल त्भभिखष्कष्यल, चबमष्य यच mयखष्भकस यच तजभथ बचभ ाबकजष्यलबदभि। त्जभ उचभकभलत पष्ििभचक बचभ mबष्लथि भ्लनष्किज बलम ज्ष्लमष् ष्ल ल्भउबभिकभ अयलतभहत।
ल्भउब िष्क ष्ल तजभ अचयकक चयबम चभनबचमष्लन तय उचभकभचखभ ष्तक अगतिगचभ बलम अष्खष्ष्शिबतष्यलक। ल्भउब िष्क खभचथ mगअज अयलागकभम या mयमभचलष्शबतष्यल या अगतिगचभ बलम अष्खष्ष्शिबतष्यल ष्ल ब कभखभच उचभककगचभ या धभकतभचलष्शबतष्यल। त्जभ मष्कअबचमभम उभयउभि, तजभ भखष्अतभम बलम तजभ गलझउयिथभम तजभ नचबमगबतभक धष्तज तजभष्च mगअज(ाष्लनभचभम दष्य(मबतब बलम मचभबmक या mष्नचबतष्लन बिलम या mबतभचष्ब िायचतगलभक, इलभ धबथ तय मभाष्लभ ष्तिभचबतगचभ बक भखभचथतजष्लन ष्ल उचष्लत, दगत भखभचथ तजष्लन उयगचभम यगत ष्ल दबिअप बलम धजष्तभ अयगमि लयत दभ बिदभभिम बक ष्तिभचबतगचभ। ज्यधभखभच तजभचभ ष्क लयतजष्लन धचयलन ष्ल ष्तिभचबतगचभ बक कबष्म दथ ख्ष्अतयच ज्गनय, बतिजयगनज ष्त जयमिक उभयउभिुक नययम कभलकभ, ष्मभब िष्लागिभलअभक बलम तष्mभ जयलयचभम अगतिगचभ ष्ल जष्नज चभनबचम। ध्बति ध्जष्तmबल, ब चभलयधलभम उयभत ाचयm ग्क् चष्नजतथि यदकभचखभम बक कबथष्लन ष्तिभचबतगचभ ाचभभक, बचयगकभक बलम मष्बितभक जगmबल mष्लम। ीष्तभचबतगचभ जभउिक गक तय जबखभ दभततभच गलमभचकतबलमष्लन या यगचकभखिभक बलम नष्खभ बचतष्कतष्अ भहउचभककष्यल तय जगmबल लबतगचभ बलम कयअष्ब िषिभ। क्ष्त उभचकगबमभ ष्लतय बमयउतष्लन mयचबष्तिथ बलम कभाि चभकउभअतष्लन बलम नयिचष्यगक षिभ। क्ष्त यााभचक ष्लकष्नजत ष्लतय जगmबल अजबचबअतभच बलम बउउभबकभक तजभ चभबमभचुक अगचष्यकष्तथ, लयगचष्कजष्लन तजभष्च अयलकअष्भलअभ।
ल्भउबष् िष्तिभचबतगचभ, बचत बलम अगतिगचभ ष्क खभचथ मभलकभ बलम या खष्तब िष्mउयचतबलअभ। त्जभ अगतिगचभ या मषाभचभलत चबअभक भहष्कतष्लन ष्ल तजभ धयचमि ष्क बकिय ायगलम ष्ल ल्भउब िष्ल बलथ ायचm, धजष्अज ष्क कगचउचष्कष्लन ष्ल ष्त कभाि। ध्भ मय जबखभ कयmभ ष्तिभचबचथ नभलष्गक धजयकभ धयचप mथ लयत दभ ाबच दभजष्लम तजभ कतबलमबचम या अयलतझउयचबचथ धयचमि ष्तिभचबतगचभ दगत बिअप या तचबलकबितष्यल या कगअज धयचपक दयिअपक तजभ बअअभकक तय ष्लतभचलबतष्यलब िmबचपभत।
क्ष्लमबच द्यबजबमगच च्बष्, चभलयधलभम ल्भउबष् िष्तितéचबतभगच ष्ल क्ष्लमष्ब, जबक भहउचभककभम तजबत ूधभ जबखभ दभभल कभभल तजभ धयचपक या तजयकभ या तजभ धयचमि धजय धयल ल्यदभ िएचष्शभ, अयmउबचष्लन तय तजभष्च धयचपक, तजभ त्रगबष्तिथ या यगच धचष्तभचक बलम उयभतक बचभ बक दभकत बक तजभष्चक।

त्जभ नचयधतज या ष्लमष्नभलयगक उगदष्किजष्लन बलम धचष्तष्लन ष्ल चभअभलत थभबचक ष्क ब नययम कष्नल। ध्ष्तज तजभ कउचभबम या भमगअबतष्यल, तजभचभ ष्क अयmष्लन यगत ब कयअष्ब िबलम अगतिगचब िअजबलनभ बलम यलभ ष्लकतचगmभलत तय अबगकभ कगअज ब mयखझभलत ष्क यदखष्यगकथि तजभ दययप। ज्यधभखभच, तजभ नचयधतज या चभबमष्लन उगदष्अि जबक लयत ष्लअचभबकभम ष्ल तजभ उबअभ या नचयधष्लन ष्तिभचबअथ बलम भमगअबतभम mबकक। द्यययप अयलतष्लगभक तय चझबष्ल ब गिहगचथ ायच ब उबष्लागििथ बिचनभ लगmदभच या तजभ उयउगबितष्यल। ऋयलकष्मभचष्लन तजभ ष्mउयचतबलत चयभि उबिथभम दथ ष्तिभचबतगचभ ष्ल दगष्मिष्लन गउ नचभबत तचबमष्तष्यलक ष्ल कयअष्भतथ, तजभ ाष्भमि या ष्तिभचबतगचभ जबक दभभल कबमथि लभनभिअतभम। ब्लम तजभ कभअगबिच चभष्निष्यल या तजभ तष्mभक, ाचभभ(mबचपभत अबउष्तबष्किm जबक दभभल धष्लष्लन तजभ दबततभि ष्ल बिि ाचयलतक ष्लअगिमष्लन ष्तिभचबतगचभ।

त्जबलपक तय तजभ mयमभचल अयmmगलष्अबतष्यल तभअजलययिनथ बलम ष्लअचभबकष्लन ष्लतभचलबतष्यलब िभहउयकगचभ, mबलथ धबखभ कष्तभक या ष्तिभचबतगचभ, कयmभ तचबलकबितष्यल धयचप या ल्भउबष् िष्तिभचबतगचभ ष्ल भ्लनष्किज बलम यतजभच बिलनगबनभक बलम ब लभध दचभभम या ल्भउबष् िधचष्तभचक यचष्नष्लबििथ धचष्तष्लन ष्ल भ्लनष्किज बलम यतजभच ायचभष्नल बिलनगबनभ जबखभ चभखभबभिम तजभ षिभ या ल्भउबष् िकयअष्भतथ ष्ल तजभ ष्लतभचलबतष्यलब िबचभलब।
त्जभ खष्भध तजबत ल्भउबष् िष्तिभचबतगचभ कजयगमि दभ तचबलकबितभम ष्लतय यतजभच बिलनगबनभक तय जबखभ ब चभबअज तय तजभ ष्लतभचलबतष्यलब िबचभलब ष्क ष्नलयचभम दथ तजभ कतबतभ बलम उगदष्किजभचक। ज्यधभखभच कयmभ अचष्तष्अक अबिष्m तजबत ल्भउबष् िष्तिभचबतगचभ तयमबथ ष्क यल तजभ कबmभ ाययतष्लन बक तजभ धयचमि ष्तिभचबतगचभ दगत ायच बिअप या तचबलकबितष्यल ष्लतय यतजभच बिलनगबनभक ष्त जबचमथि तचबलकअभलमक तजभ लबतष्यलब िउभचष्उजभचथ ष्क ब मष्कबउउयष्लतष्लन ाबअतयच। इदखष्यगकथि, तजभचभ ष्क नययम mबचपभत तयय तय तजभ ष्लमष्कउगतबदभि ल्भउबष् िष्तिभचबतगचभ बदचयबमस धभ जबखभ लयत दभभल बदभि तय भहउयिष्त ष्त कय ाबच।
त्जभ च्यथब िल्भउब िब्अबमझथ बलम क्बवजब उचबपबकजबल, तजभ कगअअभककयच या तजभ द्यजबकजबलगदबम एबचष्कजबम, जयधभखभच जबखभ लयत नष्खभल बउउचयबचष्बतभ बततभलतष्यल तय तचबलकबितभ ष्मभब िल्भउबष् िष्तिभचबचथ धयचपक ष्लतय तजभ धयचमिुक mबवयच बिलनगबनभक। त्जभकभ ष्लकतष्तगतष्यलब िउगदष्किजभचक जबखभ कय ाबच उगदष्किजभम भ्लनष्किज तचबलकबितष्यल ष्ल ब खभचथ ाभध लगmदभच। ब्अबमझथ जबक उगदष्किजभम ःगलबmबमबल, बलम अयलतझउयचबचथ उयझक या ीबहmष् एचबकबम म्भखबपयतब, एचबजिबम या द्यबबिपचष्कजलब क्बmब, ब्कधबततबजmब या ःबमजबख एचबकबम न्जष्mष्चभ, क्बबत क्गचथबस् भ्प एजबलपय या च्बmभकज ख्ष्पब,ि बक धभिि बक क्भखभल ल्भउबष् िउयभतक बलम ःयमभचल ल्भउबष् िएयझक ष्ल भ्लनष्किज। ीष्पभधष्कभ क्भभिअतभम क्तयचष्भक ाचयm ल्भउब,ि म्भखबपयतबुक ःगलबmबमबल, बलम भ्हउचभककष्यल बातभच म्भबतज या द्यबबिपचष्कजलब क्बmब जबखभ दभभल उगदष्किजभम दथ क्बवजब एचबपबकजबल। क्यmभ यतजभच धयचप उगदष्किजभम दथ उचष्खबतभ उगदष्किजभचक तय दभ mभलतष्यलभम बचभ क्भतब द्यबनज दथ म्ष्mयलम क्गmकजभच, क्भभिअतभम क्जयचत क्तयचष्भक या च्बmभकज ख्ष्पब,ि क्भष्पय ीबन दथ ः।द्य।द्य। क्जबज, त्जभ म्चभबm ब्ककझदभिम दथ ःबलगव द्यबदग ःष्कजचब बलम क्भभिअतभम ल्भउबष् िीथचष्अब िएयझक दथ व्ष्धब ीबmष्अजजबलभ। द्यभकष्मभक तजभकभ भाायचतक कयmभ यतजभच तचबलकबितष्यल ष्क मयलभ mयचभ यल तजभ उभचकयलब िअबउबअष्तथ चबतजभच तजबल ष्लकतष्तगतष्यलब िदबकष्क। क्यmभ ल्भउबष् िधयचपक बचभ बकिय तचबलकबितभम ष्लतय न्भचmबल, ऋजष्लभकभ, ग्चमग, व्बउबलभकभ, ँचभलअज, च्गककष्बल बलम ज्ष्लमष् दभकष्मभक भ्लनष्किज।
त्जष्क भलष्कितmभलत या ल्भउबष् िष्तिभचबतगचभ ष्क चभबििथ बल बउउचबष्कब ितबकप। क्ष ष्त अयगमि नभत ष्तक अयलतष्लगष्तथ, तजभल ष्त धयगमि दभ बल ष्mउयचतबलत अयलतचष्दगतष्यल तय ल्भउबष् िष्तिभचबतगचभ। ज्यधभखभच, तजभ तबकप या तचबलकबितष्लन उचभकभलतष्लन ल्भउबभिकभ ष्तिभचबतगचभ ष्ल भ्लनष्किज बलम यतजभच बिलनगबनभक कजयगमि अयखभच तजभ मष्खभचकष्तथ या कगदवभअतक बलम दभ उचभकभलतभम तजभ नभलगष्लभ धयचपक या ल्भउबष् िधचष्तभचक तय जभउि गलमभचकतबलम ब दभततभच ल्भउब।ि इदखष्यगकथि, तजष्क खभचथ ष्mिष्तभम तचबलकबितष्यल धयचप ष्क लयत कगााष्अष्भलत तय चभउचभकभलत ल्भउबष् िष्तिभचबतगचभ उचयउभचथि। भ्खभल तजभ तचबलकबितभम बलतजययिनथ या ःयमभचल ल्भउबष् िएयझक बलम क्भभिअतभम क्तयचष्भक, जयधभखभच तजभ उगदष्किजभच अबिष्m तजभथ बचभ चभउचभकभलतबतष्खभ, मय लयत चभउचभकभलत अयलतझउयचबचथ धचष्तष्लन ष्ल ब ाबष्च बलम यदवभअतष्खभ mबललभच। त्जष्क कअभलबचष्य कजयधक तजभचभ ष्क बल गचनभलत लभभम या कथकतझष्अ धयचपक ष्ल यचमभच तय तचबलकबितभ बलम उगदष्अिष्शभ यगच ष्तिभचबतगचभ बलम नभलष्गक
ध्जबतभखभच mबथ दभ तजभ मभकतष्लथ या जगmबलष्तथ, अयगचतभकथ या तजभ भभिअतचयलष्अक ष्ल mयमभचल षिभ धजभचभ भझिभलतक या तष्mभ अयगमि दभ ब mबवयच मभअष्कष्खभ ाबअतयच, अभचतबष्ल अयलखभलतष्यलब िलयचmक अबल लभखभच दभ चभउबिअभम। ब्लम यलभ बmयलन तजझ जबउउभलक तय दभ तजभ दययपक बलम तजभ चभबमष्लन जबदष्तक। त्जभ ष्mmभलकभ उभिबकगचभ धजष्अज ब चभबमभच नबष्लक दथ चभबमष्लन ब दययप अबल लभखभच दभ भहउभचष्भलअभम यखभच तजभ भभिअतचयलष्अ चभबमष्लन ष्पिभ ऋम्(च्इःभ् भमष्तष्यलक ष्ल अयmउगतभच बतिजयगनज तजभ कगदवभअत यच तजझभ अयगमि दभ खष्भधभम ष्ल खबचथष्लन मष्mभलकष्यलक। ब्क चभबमष्लन ष्क ब मष्कअयखभचथ, ष्त भलनबनभक तजभ चभबमभचुक mष्लम बलम ष्mबनष्लबतष्यल। त्जगक, दभ ष्त ाष्अतष्यल यच लयल(ाष्अतष्यल, तजभ अजबचबअतभचक बलम कगदवभअत mबततभच चभबम ष्ल तजभ दययप गकगबििथ तबपभ कउभअषष्अ कजबउभक ष्ल तजभ चभबमभचुक अयलअभउतगब िखष्कष्यल गलष्पिभ धजबत ष्क मभउष्अतभम कथलतजभतष्अबििथ यल तजभ ऋम्।
ज्भलअभ, बत ब तष्mभ धजभल लभधक या तजभ मभबतज या तजभ दययप ष्क अयलकतबलतथि दभष्लन बललयगलअभम( दभअबगकभ या बिअप या ागलमक, तजभ चष्कभ या तजभ भभिअतचयलष्अ बलम खष्कगब िmभमष्ब बलम यतजभच मष्कतचबअतष्यलक( तजभ अचगअष्ब ित्रगभकतष्यल ष्क धजभचभ मयभक तजभ mबकक अगतिगचभ बलम ष्तिभचबतगचभ ष्भि ष्ल ल्भउब।ि ध्भ कजयगमि जबखभ मयलभ नचभबत भाायचत तय मभखभयिउ दययप ष्लमगकतचथ बलम चभबमष्लन जबदष्त बmयलन तजभ उभयउभि। इल तजभ अयलतचबचथ, लयतजष्लन mगअज ष्क जबउउभलष्लन यल तजभ ल्भउबष् िदययप ाचयलत ष्ल तभचmक या तचबमभ ष्ल दययपक ष्पिभ उगदष्अिबतष्यल, तचबलकबितष्यल, चभउचष्लत यच बमबउतबतष्यल। न्भलभचबििथ धभ दगथ दययपक ष्ल भ्लनष्किज ाचयm अयगलतचष्भक ष्पिभ क्ष्लमष्ब, ग्।क्। बलम ग्।प्। द्यययपक बचभ लयधजभचभ ष्ल तजभ लबतष्यलब िकअजझभ। ँभध दभष्भिखभ तजबत दययपक बचभ ष्mउयचतबलत तय लबतष्यलब िमभखभयिऊभलत, जयधभखभच लयत भखभल भिबमभचक बलम दगचभबगअचबतक ागििथ चभबष्शिभ तजभ अयललभअतष्यल। त्जबत ब लबतष्यल धष्तजयगत दययपक जबक लय कयग िष्क वगकत लयत बक गचनभलत यच उचभककष्लन बक ब लबतष्यल धष्तजयगत ाययम यच वयद ायच ष्तक उभयउभि। त्जभ कष्तगबतष्यल बत उचभकभलत ष्क लयत जभबतिजथ। ीबचनभच उभचअभलतबनभक या दययपक धभ उचयमगअभ बचभ तभहतदययपक। ब्क तभहतदययपक बयिलभ बचभ लयत कगााष्अष्भलत, तचबमभ दययपक या ष्तिभचबचथ बलम बचतष्कतष्अ त्रगबष्तिथ बचभ ब लभअभककबचथ कगउउझिभलत ष्ल लगचतगचष्लन तजभ यिखभ ायच दययपक बलम चभबमष्लन। क्ष्त कभझक तचगथि चष्मष्अगयिगक तजबत भखभल यगच खभचथ यधल कतयचष्भक, यगचक यधल अगतिगचभ बलम ाभभष्लिनक बचभ दभष्लन धचष्ततभल बलम तयमि दथ ायचभष्नलभचक, भकउभअष्बििथ धचष्तभचक ाचयm तजभ धभकत। ध्भ लभभम तय दगष्मि गउ तजभ अयलाष्मभलअभ बलम लयगचष्कज तजभ तबभिलत या यगच यधल धचष्तभचक। ध्भ अबलुत कतयउ तजभ ष्mउयचतष्लन दययपक तय उचयतभअत तजभ लबतष्यलब िदययप ष्लमगकतचष्भक। त्जभ धबथ तय मष्कउबिअभ ायचभष्नल दययपक ष्क तय उचयमगअभ mयचभ यिअबििथ। त्जभ दययप ष्लमगकतचथ लभभमक तय दभअयmभ mयचभ खष्नयचयगक बलम तजभचभ mगकत दभ ब धष्मभ चबलनभ या ष्लतभचभकतष्लन तष्तभिक यगत तजभचभ ायच नभलभचब िचभबमष्लन। ध्भ जबखभ लयत दभभल बदभि तय दगष्मि ब अयmmगलष्तथ या चभबमभचक( ब अचष्तष्अब िmबकक( तजबत धयगमि कतष्mगबितभ यतजभचक तय तबपभ तय तजभ दययप ायच तजभ कजभभच उभिबकगचभ या ष्त। त्जभ ागतगचभ नचयधतज या तजभ दययप उगदष्किजष्लन ष्लमगकतचथ धष्िि बिचनभथि मभउभलम यल जयध चभबमभचक ष्ल गचदबल बलम चगचब िबचभबक चभकउयलम तय ष्त। त्जभष्च चभकउयलकभ ष्क मभतभचmष्लभम दथ तजभ कउचभबम या ष्तिभचबअथ बलम यखभच बिि कयअष्य(भअयलयmष्अ मभखभयिऊभलत ष्ल मषाभचभलत चभनष्यलक बलम बिलनगबनभ नचयगउ। ँयच बलथ अगतिगचभ तय नचयध बलम ायिगचष्कज, ष्त mगकत जबखभ ब mबकक दबकभ। ब्लम यदखष्यगकथि, ष तजभ दबकभ ष्क भचयमभम ष्त धष्िि दभअयmभ धभबप बलम मष्भ। इलभ mगकत चझझदभच तजबत तजभ दबकभ ष्क अचभबतभम लयत दथ mयलभथ बयिलभ दगत बकिय दथ बिलनगबनभ, धजष्अज मभतभचmष्लभक तजभ ष्mिष्तक या यगच तजयगनजतक।


नेपाल–भारत दुई देशका श्रष्टाहरूकाबीच साहित्यिक, भाषिक तथा सांस्कृतिक आदानप्रदानजस्ता छलफलका माध्यमद्वारा यस क्षेत्रको सम्बद्र्धनमा सघाउन दुबै देशका साहित्यकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मीहरूको साझा मञ्चका रूपमा परिकल्पना गरिएको .वीपी कोइराला नेपाल–भारत प्रतिष्ठान यथार्थमा कहिल्यै यो परिकल्पनाको नजिक सम्म पुग्न सकेन । यो कि शितल निवासनिकट साहित्यिक गूटको खाइखेल्ने ठाउँ बन्यो, कि लैनचौरले पत्याएका मात्रले साहित्यकार, कलाकार र संस्कृतिकर्मीमा दरिने सौभाग्य पाउँदै आए । यसले सुरुदेखि नै साँच्चिकै साझा मञ्चको भावना दिन सकेन । यसका प्राय सबै सम्मेलनका उपलब्धी र सहभागिता विवादमा पर्दे आएको छ ।
समग्र सामाजिक परिप्रेक्षमैं नेपाली समाजको जसरी मूल्य विघटन हुँदै गएको छ, आस्था र विश्वासको जग नै भत्किँदै गएको छ, त्यो पृष्ठभूमिमा प्राज्ञिक क्षेत्र पनि यसको प्रभावमा पर्नु अस्वभाविक होइन । तर स्रष्टा–प्राज्ञहरूको दायित्व समाजको सामान्य प्रविृत्तिमा आफैं बग्नु नभएर समाजलाई सही दिशा तर्फ प्रवृत्त गर्न बौद्धिक नेतृत्व दिनु हो । यो मान्यता मान्यता लाई स्वीकार्ने हो भने हाम्रो प्राज्ञिक क्षेत्रमा देखिएका प्रदूषण, गैह्र प्राज्ञिक मनोवृत्ति र साधनाभन्दा पदीय प्राप्तिको पछाडि दाौडिने कार्यव्यापार पतनोन्मुख समाजको पूर्व सङ्केत नमानी सखै छैन । यो सम्मेलनमा यो प्रवृक्ति देखिँदै आउनुम सायद त्यति धेरै आश्चर्य मननु नपर्ला । यही कारण यस्ता सम्मेलनमा समेत सहभागिता गर्न गराउन भनसुन्, गूटउपपगूट राजनीतिक प्रभावका दाउपेचको प्रशस्त अभ्यास हुँदै अएका देखिनु स्वभावि मान्नु पर्छ ।
साहित्य कुनै निवास र चौरको सिफारिसमा लेख्ने र लेखिने पिववषय होइन, न त कसैले टीको लाइदिँदैमा कोही साहित्यकारको रूपमा टिकीरहन सक्छ । यसको मूल्याङ्कन स्रष्टाको समग्र लेखकीय तथा प्राज्ञिक योगदानलाई सामाजले प्रदान गर्ने मान्यताको आधारमा हुन्छ । दर्खास्त मागेर स्रष्टाहरूको अवमूल्यन गराउने र तिमी पुरस्कृत होइनौ मात्र एउटा याचक हौ, हामी पुरस्कार दिने दिलाउने मठाधीशहरू दानबीर दाता हौं भन्ने सन्देश प्रवाह भइरहेको साकालीन नेपालमा श्रष्टाहरूले अवमूल्यनको सङ्कट बेहोर्दै आउनु पनि सायद अस्वभाविक होइन । यस्ता प्रतिष्ठानहरू विद्वान्हरूको एउटा त्यस्तो सङ्गठित समाज बन्न सक्नेु पर्ने हो, जुन समाज कला, विज्ञान, साहित्य, सङ्गीत र संस्कृतिका यस्तै अरु क्षेत्र र बौद्धिक क्ष्ोत्रको विकासमा सदा समर्पित रहन्छ, निहिीत गूट र समूहको स्वार्थपूर्तिमा होइन । यस्ता जवाफ कसले दिने ?
प्रकाशन उद्योग निकै फस्टाएको देखिए पनि तिनका प्रमुख आधार पाठ्यक्रमीय प्रकाशन, सहयोगी शैक्षिक सामग्रीका नाउँमा सजिलै परीक्षा उत्तीर्ण गर्ने विज्ञापन सहितका कुञ्जी तथा सस्ता साहित्य र मूल्यहीन रचना बन्ने गरेका छन् । राजधानीका प्राय पुस्तक र अखबार पसल, सडक छेउका पसलहरू तथा सडकमुनि र माथिका प्रत्येक आवागमन मार्गमा बेच्न राखिएका जताततै देखिने यौनजन्य विषयबस्तुका कथित साहित्य र प्रकाशनले माथिको कुराको पुष्टी मात्र गर्दैनन् हाम्रा शहरी युवा र अन्य पाठकको पठन रुचि कतातिर प्रेरित हुँदैछ भन्ने नकारात्मक संकेत समेत गरिरहेको छ । तीब्र गतिमा देखिँदै गएको यो प्रवृत्तिले खराब मुद्राले असललाई धपाएजस्तै राष्ट्रिय मानसिकता, मूल्य, मान्यता र संस्कृतिको संवाहक मानिने मूलधारको साहित्यलाई नराम्ररी प्रभावित गर्ने त होइन भन्ने आशङ्का समेत व्यक्त गरिँदैछ । सस्ता यौन साहित्यमा मात्रै नभएरसाहित्यका नाउँमा लेखिएका केही नेपाली र अङ्ग्रेजी भाषाका आख्यानहरूमा समेत अनावश्यक यौन विषयको समाविष्टीको प्रवृत्ति देखिएको छ । बजार चर्चा पनि प्राय यस्तै साहित्यको बढी हुने गर्दछ । यसरी नै नेपाली लेखनका नाउँमा बाह्य संस्कार र संस्कृतिको प्रभावमा प्रयोगका नाउँमा लेखिएका कतिपय साहित्यले नेपाली मूलधारको साहित्यको आत्मा र सच्चा नेपाली जीवनजगतको प्रतिनिधित्व गर्न सक्लान्र ? यो पनि नेपाली साहित्य जगतमा कहिलेकाहीँ उठ्ने गरेको प्रश्न हो ।
अमेरिकी तथा युरोपेली संस्कृतिमा रम्ने पश्चिमी रुचिका पाठकका लागि जतिसुकै लोकप्रिय होउन्, विज्ञहरूको धारणामा भने तिनले नेपाली माटोको सुवास र नेपाली आत्माको प्रतिनिधित्व गर्न सक्दैनन् । मूल्यवान लेखनमा सक्रिय नेपाली माटोको सुवास र नेपाली अनात्माको स्पन्दन बोक्ने साहित्यकारको बाहिरी सम्पर्क, अङ्ग्रेजी र अन्यभाषामा लेख्ने अनुवाद गर्ने भाषिक क्षमता तथा ती काममा संलग्न गुट वा समूहसँग कुनै संपर्क हुँदैन । त्यसैले बाहिरी संसारमा वास्तविक नेपाली साहित्यको प्रतिनिधित्व गर्ने साहित्यकारको भन्दा बाहिरी सम्पर्क हुनेहरूको पहुँच बढी हुनु स्वभाविक हो । अङ्ग्रेजी र अन्य भाषामा भएको नेपाली साहित्यको अनुवादको अवस्थाले पनि यो कुरा स्पष्ट हुन्छ । यसबाट अन्तराष्ट्रिय भाषा र बजारमा पहुँचका कारण जेजस्ता साहित्य नेपाली साहित्यका नाउँमा बाहिरी भाषामा लेखिँदै छन्, अनुवाद हुँदैछन्, बाहिरी संसारले तिनै लेखक र कृतिलाई नै नेपाली साहित्यको मानक ठान्ने संभावना स्पष्ट देखिँदैछ । विज्ञहरूको यो धारणालाई गलत ठानने अवस्था देखिँदैन । नेपाली समाजभको भन्दा बाह्य संस्कार र संस्कृतिमा रमाउने कलमबाट सिर्जित रचनामा नेपाली समजको सतही ज्ञानमा आधारित साहित्यले वास्तविक नेपाली साहित्यको प्रतिनिधित्व गर्न सक्दैन, यो सत्य हो ।
बाहिरी जगतलाई नेपाली सभ्यताको सही परिचय दिन पनि नेपाली साहित्य, कला र संस्कृतिलाई ती समक्ष पु¥याउन जरुरी हुन्छ । नेपाली संस्कृतिको सही परिचय दिन विश्व भाषामा नेपाली साहित्यको बढी भन्दा अनुवाद र प्रकाशनको अपरिहार्यता रहने कुरा स्वतः सिद्ध छ । समकालीन विश्वमा विश्व साहित्यको हाराहारीमा पुग्ने नेपाली साहित्यिक कृति पनि सायद हामीसँग नभएका होइनन् । यो परिचय दिने सामथ्र्य राख्ने नेपाली साहित्यकार, कलाकार र संस्कृतिको क्षेत्रमा काम गर्ने नेपाली व्यक्तित्वहरूको पनि सायद उल्लेख्य उपस्थिति रहेको छ । तर यी कृति र योगदानलाई बाह्य संसारसम्म पु¥याउने संस्थागत र राष्ट्रिय प्रयास भने हुन सकेको छैन । यसको अभावमा गर्दा नेपाली साहित्य र संस्कृतिको न्युन परिचय र अझ यताका केही समयमा आएर गलत परिचय बाहिर जाने संभावना बढिरहेको छ । सञ्चारप्रविधिको विकासका कारण नेपाली कलासाहित्यले पनि उल्लेखनीय मात्रामा बाह्य संपर्कको अवसर पाउँदैछ, यो खुसीको कुरा हो । इण्टरनेटका माध्यमबाट नेपाली साहित्यको परिचय दिलाउने अनेकौं वेभसाइट, अङ्ग्रेजी र अन्य भाषामा हुन थालेका नेपाली कृतिहरूको अनुवाद र बाहिरी प्रकाशनहरूले नेपाली साहित्यको प्रकाशनमा देखाउन थालेको रुचिले नेपाली साहित्यको माध्यमबाट नेपाली संस्कृति, जनजीवन र समग्रमा नेपाली राष्ट्रिय सभ्यतालाई बाहिरी संसारमा पु¥याउने तर्फ रामै्र योगदान गर्ने संकेत देखाउँदैछन् । राज्य र राज्यको प्रतिनिधित्व रहेका संस्थागत प्रकाशनहरूले अनुवाद र प्रकाशनको कमलाई उचित महत्व नदिए पनि विभिन्न तहमा भइरहेका यस्ता काम निश्चय नै स्वागतयोग्य काम हुन् । तर यी माध्यमबाट बाह्य संसारमा पु¥याइने सामग्री सही अर्थमा नेपाली साहित्य र संस्कृतिको प्रतिनिधित्व गर्न सक्षम रहून् भन्ने कुरा भने बिर्सन मिल्दैन ।
नेपाल भाषा प्रकाशिनी समिति र भाषानुवाद परिषदको निरन्तरता ठान्ने साझा प्रकाशन र नेपाली कला, साहित्य, संस्कृत र समग्र वाङ्मयको उन्नयन, मानकीकरण र अन्तराष्ट्रिय जगतमा नेपाली साहित्यिक–प्राज्ञिक पचिय दिने दायित्व बोकेर खडा भएको नेपाल राजकीय प्रज्ञाप्रतिष्ठान अनुवाद र बाह्य संसारमा नेपाली साहित्यको सार्थक उपस्थिति देखाउने दिशामा त्यति उत्साहित देखिएका छैनन् । यिनका माध्यमबाट भएका नेपाली साहित्यका कृतिको अङ्ग्रेजी अनुवादका सङ्खया अत्यन्त सीमित देखिन्छन् । प्रतिष्ठानका प्रकाशनमा मुनामदन, प्रल्हाद, अस्वत्थामा, सात सूर्यः एक फन्को, सात नेपाली कवि र आधुनिक नपाली कविता आदि केही कृतिका अङ्ग्रेजी अनुवाद वाहेक खास काम भएको देखिएको छैन । देवकोटाका मुनामदन बाहेकका अन्य कृति बाहिरी संसारमा पु¥याएर नेपाली साहित्यको सार्थक उपस्थिति गराउनु आवश्यक छैन ? के एकेडेमीले बाहिरी संसारलाई चिनाउनु पर्ने कविता क्षेत्र मात्र हो, त्यत्तिकै र अझ त्योभन्दा बढी सशक्त नोपली गद्य र खासगरी आख्यान क्षेत्रको बाह्य पचिय आवश्यक छैन ? यस्ता अनेकौं प्रश्न खडा हुनसक्छन् । साझा प्रकाशले त अनुवाद तर्फ यतिसम्म पनि ध्यान पु¥याउन सकेको देखिँदैन । साझा प्रकाशनकै पछिल्लो सूचीपत्र अनुसार पनि यसले प्रकाशन गरेका अनुवादमा महाकविको मुनामदन, समको मृत्युपछिको अभिव्यञ्जना र सिलेक्टेड स्टोरिज फ्रम नेपाल बाहेक अरु अनुवाद भएको देखिँदैन । मुनामदनलाई दुबै प्रकाशकले आफ्नो प्राथमिकतामा पार्नुको साटो पछिल्लो प्रकाशकले महाकविकै अर्को कुनै प्रसिद्ध कृति छानेको भए एउटा थप कृतिले अनुविादको अवसर पाउँथ्यो भन्ने तर्क पनि अस्वाभाविक होइन । कविता र कथाकाका कथित प्रतिनिधिमूलक अनुवादसंग्रह पनि कति प्रतिनिधिमूलक छन् कति गुटसमूहप्रभावित भन्ने यससम्बन्धमा चलेका विवादले प्रष्ट्याएकै हुन । यसरी जिम्मेवार भनिने संस्थाहरू समेत यस दिशाम उदासीन नै देखिका छन् भन्नु बढी नठहर्ला ।
निजी क्षेत्रका केही अनुवादक र प्रकाशकका तर्फबाट बरु केही प्रयास भएका छन् । डायमण्ड शमशेरको सेतोबाघ, रमेशविकलका प्रतिनिधि कथाहरू, म.वि.वि. शाहको उसैका लागि, मनुजबाबु मिश्रको द ड्रिम एसेम्बल्ड, कञ्चन पुडासैनीको संपादनको द इमर्जिङ भ्वासेज, जीवा लामिछानेको संपादनको सिलेक्टेड नेपाली लिरिकल पोयम्स यस क्षेत्रमा उल्लेख्य प्रयास मान्नु पर्छ । यस बाहेक पनि व्यक्तिगत प्रयासमा अरू केही काम भएका छन्, केही कृतिको अङ्ग्रेजी बाहेक जर्मन, चाइनिज, फ्रेञ्च, उर्दु, जापानी, रसी र हिन्दी भाषामा समेत अनुवाद भएर प्रकाशनमा आका देखिन्छन् । यी प्रयास निश्चय नै उत्साहयोग्य प्रयास हुन् । यो प्रयासले निरन्तरा मात्र पाउन सक्यो भने पनि नेपाली साहित्यलाई अन्तराष्ट्रिय जगतमा परिचित गराउन ठूलै सहयोग मिल्ने कुरामा शङ्का छैन । तर यो प्रयासले संस्थागत स्वरूप लिनुका साथै अनुवादका लागि चयन हुने सामग्रीमा विषयगत विविधता, सही र मूल्यवान कृतिको प्रतिनिधित्व भने आवश्यक छ, जसको अभावमा वास्तविक नेपाली साहित्य र संस्कृतिको परिचय दिनसक्दैन । त्यसैले पनि राष्ट्रिय स्तरको अनुवाद संस्थाको अपरिहार्यता स्पष्ट देखिएको छ र यसका लागि राज्यले नै अग्रसरता लिनु जरुरी देखिन्छ ।

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